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तैरेगा फ़ज़ा में जो समुंदर न मिलेगा | शाही शायरी
tairega faza mein jo samundar na milega

ग़ज़ल

तैरेगा फ़ज़ा में जो समुंदर न मिलेगा

साहिर होशियारपुरी

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तैरेगा फ़ज़ा में जो समुंदर न मिलेगा
दिल सा भी ज़माने में शनावर न मिलेगा

साहिल से तो अंदाज़ा-ए-तूफ़ाँ भी है दुश्वार
तह में जो न उतरोगे तो गौहर न मिलेगा

वाबस्ता है इस बज़्म से ही घर का तसव्वुर
उठ जाएगी जब बज़्म तो फिर घर न मिलेगा

पर्वाज़ ख़लाओं में मुबारक तुम्हें लेकिन
इक बार बिखर कर तो ये पैकर न मिलेगा

सर फोड़ने वाले रहें वल्लाह सलामत
कुछ दिन में इबादत को भी पत्थर न मिलेगा

हर ज़र्रा है फ़िरदौस-ए-नज़र हद-ए-नज़र तक
बेदार न होना कि ये मंज़र न मिलेगा

सैराब जो हैं उन की हवस और बढ़ी है
इस भीड़ में प्यासों को समुंदर न मिलेगा

तुम लुत्फ़-ए-मुलाक़ात को ख़्वाबों में बसा लो
ये लम्हा मसर्रत का बिछड़ कर न मिलेगा

हर शेर में इज़हार से एहसास हम-आग़ोश
इस दौर में 'साहिर' सा सुख़न-वर न मिलेगा