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तारों से मेरा जाम भरो मैं नशे में हूँ | शाही शायरी
taron se mera jam bharo main nashe mein hun

ग़ज़ल

तारों से मेरा जाम भरो मैं नशे में हूँ

साग़र सिद्दीक़ी

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तारों से मेरा जाम भरो मैं नशे में हूँ
ऐ साकिनान-ए-ख़ुल्द सुनो मैं नशे में हूँ

कुछ फूल खिल रहे हैं सर-ए-शाख़-ए-मय-कदा
तुम ही ज़रा ये फूल चुनो मैं नशे में हूँ

ठहरो अभी तो सुब्ह का मारा है ज़ौ-फ़िशाँ
देखो मुझे फ़रेब न दो मैं नशे में हूँ

नश्शा तो मौत है ग़म-ए-हस्ती की धूप में
बिखरा के ज़ुल्फ़ साथ चलो मैं नशे में हूँ

मेला यूँ ही रहे ये सर-ए-रहगुज़ार-ए-ज़ीस्त
अब जाम सामने ही रखो मैं नशे में हूँ

पायल छनक रही है निगार-ए-ख़याल की
कुछ एहतिमाम-ए-रक़्स करो मैं नशे में हूँ

मैं डगमगा रहा हूँ बयाबान-ए-होश में
मेरे अभी क़रीब रहो मैं नशे में हूँ

है सिर्फ़ इक तबस्सुम-ए-रंगीं बहुत मुझे
'साग़र' ब-दोश लाला-रुख़ो मैं नशे में हूँ