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तार-तार-ए-पैरहन में भर गई है बू-ए-दोस्त | शाही शायरी
tar-tar-e-pairahan mein bhar gai hai bu-e-dost

ग़ज़ल

तार-तार-ए-पैरहन में भर गई है बू-ए-दोस्त

हैदर अली आतिश

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तार-तार-ए-पैरहन में भर गई है बू-ए-दोस्त
मिस्ल-ए-तस्वीर-ए-निहाली मैं हूँ हम-पहलू-ए-दोस्त

चेहरा-ए-रंगीं कोई दीवान-ए-रंगीं है मगर
हुस्न-ए-मतला हैं मसीं मतला है साफ़ अबरु-ए-दोस्त

हिज्र की शब हो चुकी रोज़-ए-क़यामत से दराज़
दोश से नीचे नहीं उतरे अभी गेसू-ए-दोस्त

दूर कर दिल की कुदूरत महव हो दीदार का
आइने को सीना साफ़ी ने दिखाया रू-ए-दोस्त

वाह-रे शाने की क़िस्मत किस को ये मालूम था
पंजा-ए-शल से खुलेंगे उक़्दा-हा-ए-मू-ए-दोस्त

दाग़-ए-दिल पर ख़ैर गुज़री तो ग़नीमत जानिए
दुश्मन-ए-जाँ हैं जो आँखें देखती हैं सू-ए-दोस्त

दो मरेंगे ज़ख़्म-ए-कारी से तो हसरत से हज़ार
चार तलवारों में शल हो जाएगा बाज़ू-ए-दोस्त

फ़र्श-ए-गुल बिस्तर था अपना ख़ाक पर सोते हैं अब
ख़िश्त ज़ेर-ए-सर नहीं या तकिया था ज़ानू-ए-दोस्त

याद कर के अपनी बर्बादी को रो देते हैं हम
जब उड़ाती है हवा-ए-तुंद ख़ाक-ए-कू-ए-दोस्त

उस बला-ए-जाँ से 'आतिश' देखिए क्यूँकर बने
दिल सिवा शीशे से नाज़ुक दिल से नाज़ुक ख़ू-ए-दोस्त