ता-ब मक़्दूर इंतिज़ार किया
दिल ने अब ज़ोर बे-क़रार किया
दुश्मनी हम से की ज़माने ने
कि जफ़ाकार तुझ सा यार किया
ये तवहहुम का कार-ख़ाना है
याँ वही है जो ए'तिबार किया
एक नावक ने उस की मिज़्गाँ के
ताएर-ए-सिदरा तक शिकार किया
सद-रग-ए-जाँ को ताब दे बाहम
तेरी ज़ुल्फ़ों का एक तार किया
हम फ़क़ीरों से बे-अदाई क्या
आन बैठे जो तुम ने प्यार किया
सख़्त काफ़िर था जिन ने पहले 'मीर'
मज़हब-ए-इश्क़ इख़्तियार किया
ग़ज़ल
ता-ब मक़्दूर इंतिज़ार किया
मीर तक़ी मीर