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सूखे हुए दरख़्त के पत्तों को देखना | शाही शायरी
sukhe hue daraKHt ke patton ko dekhna

ग़ज़ल

सूखे हुए दरख़्त के पत्तों को देखना

हसन निज़ामी

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सूखे हुए दरख़्त के पत्तों को देखना
फिर चेहरा-ए-हयात के ज़ख़्मों को देखना

ख़ुश-रंगी-ए-हयात का पाओगे अक्स तुम
पत्थर उछाल कर ज़रा लहरों को देखना

मेरी नज़र में ये भी इबादत ख़ुदा की है
शफ़क़त भरी निगाह से बच्चों को देखना

इस वास्ते मैं पास ही रखता हूँ आइना
मुश्किल है अपनी आँख से जज़्बों को देखना

तख़रीब-ए-काएनात की ज़िंदा मिसाल है
साहिल पे इंतिशार के ज़ख़्मों को देखना

जकड़ेंगे एक दिन वही रिश्तों के जाल में
हो जाए धुँद साफ़ तो अपनों को देखना