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सुर्ख़ सीधा सख़्त नीला दूर ऊँचा आसमाँ | शाही शायरी
surKH sidha saKHt nila dur uncha aasman

ग़ज़ल

सुर्ख़ सीधा सख़्त नीला दूर ऊँचा आसमाँ

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

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सुर्ख़ सीधा सख़्त नीला दूर ऊँचा आसमाँ
ज़र्द सूरज का वतन तारीक बहता आसमाँ

सर्द चुप काली सड़क को रौंदते फिरते चराग़
दाग़ दाग़ अपनी रिदा में सर को धुनता आसमाँ

दूर दूर उड़ता गया मैं नूर के रहवार पर
फिर भी जब भी सर उठाया मुँह पे देखा आसमाँ

जाने कब से बे-निशाँ वो चाह-ए-शब में ग़र्क़ था
मैं जो उठा हो गया इक दम उजाला आसमाँ

नाचता फिरता शरर भी नीम शब की गोद में
दिल-लगी का इक जतन था कुछ तो खुलता आसमाँ