सुनहरा ही सुनहरा वादा-ए-फ़र्दा रहा होगा
क़यास-आराई का बे-साख़्ता लम्हा रहा होगा
समुंदर में चुने मोती न तारों का जहाँ देखा
ज़रूर स्कूल में तख़्ईल पर पहरा रहा होगा
कहा था जिस ने तुम से हाँ मैं तुम से प्यार करता हूँ
मिरे अंदर छुपा इक बे-धड़क लड़का रहा होगा
मैं अब भी डरते डरते अपने हक़ की बात करता हूँ
मिरी तालीम में डर का बड़ा हिस्सा रहा होगा
तुम्हारी बज़्म से ग़ुस्से में उठ के आ गया था मैं
न जाने बअ'द में किस क़िस्म का चर्चा रहा होगा
गया है छोड़ कर महफ़िल कुछ इतनी बे-दिली से वो
कि बाहर भीड़ में भी वाक़ई तन्हा रहा होगा
वो जिस ने मुझ को रेगिस्तान में पानी पिलाया था
मुझे लगता है ख़ुद वो मेहरबाँ प्यासा रहा होगा
ग़ज़ल
सुनहरा ही सुनहरा वादा-ए-फ़र्दा रहा होगा
सुबोध लाल साक़ी