सुन ले ये इल्तिमास मिरा दोस्ताना है
हुशियार हो कि तीर-ए-अजल का निशाना है
कब तक रहेगी मसनद-ए-कम-ख़्वाब ज़ेर-ए-पा
काहे ख़मीदा यार तिरा शामियाना है
दुनिया के मख़मसे हैं ये फ़र्ज़ंद-ओ-अक़्रबा
बेगाना सब से हो कि अजल का यगाना है
ऐ अंदलीब-ए-जान-ए-चमन जिस्म पर न फूल
वीराना एक रोज़ तिरा आशियाना है
अन्फ़ास-ए-मुस्तआ'र पे क्या ए'तिबार-ए-ज़ीस्त
इक दम में मिस्ल-ए-मौज-ए-सबा तो रवाना है
ये जल्वा-हा-ए-बू-क़लमूँ बे-सबात हैं
है ज़िंदगी तिलिस्म-ए-जहाँ इक फ़साना है
रुकती नहीं है बाग किसी शहसवार से
हर-दम समंद-ए-उम्र को इक ताज़ियाना है
क्या सर-कशान-ए-दहर के क़िस्से नहीं सुने
क्या हो गए वो लोग कहाँ वो ज़माना है
कहना था जो 'नसीम' तुझे सब सुना चुके
नज़दीक इख़्तिताम तिरा कारख़ाना है
ग़ज़ल
सुन ले ये इल्तिमास मिरा दोस्ताना है
नसीम देहलवी