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सुकूत-ए-शब में दिल-ए-दाग़-दाग़ रौशन है | शाही शायरी
sukut-e-shab mein dil-e-dagh-dagh raushan hai

ग़ज़ल

सुकूत-ए-शब में दिल-ए-दाग़-दाग़ रौशन है

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

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सुकूत-ए-शब में दिल-ए-दाग़-दाग़ रौशन है
कि ज़ख़्म ज़ख़्म नहीं है चराग़ रौशन है

अभी जुनून सलामत है मेरा जान-ए-ग़ज़ल
किरन किरन है तसव्वुर दिमाग़ रौशन है

अजब मजाज़-ओ-हक़ीक़त है ख़ित्ता-ए-दुनिया
जहाँ पे हंस तो मैले हैं ज़ाग़ रौशन है

विसाल-ए-यार के लम्हे हैं आरज़ी लेकिन
मशाम-ए-जाँ में मगर सब्ज़-बाग़ रौशन है

अभी है दश्त में ज़िंदा फ़िराक़-ए-लैलाई
अगरचे ख़त्म फ़साना सुराग़ रौशन है

ग़ज़ाल आँखें हैं ऐसी कि क्या कहूँ 'ज़ाकिर'
गुलाब चेहरे पे दो दो अयाग़ रौशन है