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सुख़न में कामरानी कर रहा हूँ | शाही शायरी
suKHan mein kaamrani kar raha hun

ग़ज़ल

सुख़न में कामरानी कर रहा हूँ

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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सुख़न में कामरानी कर रहा हूँ
ज़ईफ़ी में जवानी कर रहा हूँ

ग़ुरूर-ए-नक़्श-ए-अव्वल पेश क्या जाए
मैं कार-ए-नक़्श-ए-सानी कर रहा हूँ

न समझेगा कोई मुझ को पयम्बर
अबस दावा-ए-सानी कर रहा हूँ

अजल तू ही सुबुक कर मुझ को आ कर
दिलों पर मैं गिरानी कर रहा हूँ

दिल-ए-माशूक़ पत्थर है तो होवे
मैं इस को पानी पानी कर रहा हूँ

तसव्वुर है कहाँ मुझ पास तेरा
मैं ख़ुद बातें ज़बानी कर रहा हूँ

नहीं पास उस के बैठा बे-सबब मैं
गुलों की पासबानी कर रहा हूँ

कभी तू भी तो मेरे ख़्वाब में आ
मैं तेरी याद जानी कर रहा हूँ

फ़रिश्ते का गुज़र उस तक नहीं है
मैं आफी बद-गुमानी कर रहा हूँ

नहीं ऐ 'मुसहफ़ी' फ़हमीदा कोई
अबस जादू-बयानी कर रहा हूँ