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सुख़न किया जो ख़मोशी से शायरी जागी | शाही शायरी
suKHan kiya jo KHamoshi se shaeri jagi

ग़ज़ल

सुख़न किया जो ख़मोशी से शायरी जागी

शहपर रसूल

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सुख़न किया जो ख़मोशी से शायरी जागी
चराग़ लफ़्ज़ों के जल उट्ठे रौशनी जागी

ज़िद-ए-मलाल-ओ-मसर्रत में उम्र बीत गई
ये देव सोया न वो ख़्वाब की परी जागी

तू बर्फ़ दर्द समुंदर में इज़्तिराब आया
तो ख़ुश्क-चश्म जज़ीरे में कुछ नमी जागी

वहाँ ज़बाँ पे समुंदर की ख़ुश्कियाँ उभरीं
यहाँ ज़मीन के होंटों पे कुछ हँसी जागी

नज़र नज़र में समाईं हलावतें 'शहपर'
ख़याल-ए-लम्स-ओ-नज़ारा में सरख़ुशी जागी