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सुब्ह रंगीन-ओ-जवाँ शाम सुहानी माँगे | शाही शायरी
subh rangin-o-jawan sham suhani mange

ग़ज़ल

सुब्ह रंगीन-ओ-जवाँ शाम सुहानी माँगे

मुख़तार शमीम

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सुब्ह रंगीन-ओ-जवाँ शाम सुहानी माँगे
दिल-ए-बेताब कि तेरी ही कहानी माँगे

कोई देखे ये मिरा आलम-ए-जौलानी-ए-तब्अ'
जिस तरह आब-ए-रवाँ आप रवानी माँगे

ख़ूगर-ए-ऐश नहीं फ़ितरत-ए-शोरीदा-सराँ
ग़म-ओ-अंदोह-तलब सोज़-ए-निहानी माँगे

दश्त-ए-ग़ुर्बत में उन आँखों की नमी याद आए
तिश्ना-लब जैसे कोई सहरा से पानी माँगे

शूमी-ए-ज़ीस्त कि ये आज ज़ुलेख़ा की तरह
कासा-ए-उम्र में लम्हात-ए-जवानी माँगे

अपने ख़्वाबों पे है शर्मिंदा शब-ए-ग़म-दीदा
सुब्ह-ए-मासूम उसी शब की कहानी माँगे

गुंचा-ए-शौक़ 'शमीम' आज खिला है शायद
दिल-ए-वहशत-ज़दा खूँ-नाबा-फ़शानी माँगे