सोज़ से साज़ किया चाहिए अब
नय से आवाज़ किया चाहिए अब
खा के तीर-ए-निगह-ए-नाज़ उस को
क़द्र-अंदाज़ किया चाहिए अब
जिस में जी जिस्म में आए ऐ जाँ
हाँ वो एजाज़ किया चाहिए अब
दिल में आता है तिरे ग़म को यार
महरम-ए-राज़ किया चाहिए अब
कान तक उस के तो पहुँचे यकबार
ऐसी आवाज़ किया चाहिए अब
हुस्न का वस्फ़ तिरे सूरत-ए-ख़त
ख़ामा-पर्वाज़ किया चाहिए अब
रोग़न-ए-क़ाज़ मले वस्फ़-ए-नाज़
ताज़ा पर्दाज़ किया चाहिए अब
ता न हो ताइर-ए-जाँ सैद कहीं
चश्म-ए-दिल-बाज़ किया चाहिए अब
ताइर-ए-फ़िक्र को सुस्ती से 'वक़ार'
तेज़ पर्वाज़ किया चाहिए अब
ग़ज़ल
सोज़ से साज़ किया चाहिए अब
किशन कुमार वक़ार

