EN اردو
सोते सोते चौंक पड़े हम ख़्वाब में हम ने क्या देखा | शाही शायरी
sote sote chaunk paDe hum KHwab mein humne kya dekha

ग़ज़ल

सोते सोते चौंक पड़े हम ख़्वाब में हम ने क्या देखा

ख़लील-उर-रहमान आज़मी

;

सोते सोते चौंक पड़े हम ख़्वाब में हम ने क्या देखा
जो ख़ुद हम को ढूँड रहा हो ऐसा इक रस्ता देखा

दूर से इक परछाईं देखी अपने से मिलती-जुलती
पास से अपने चेहरे में भी और कोई चेहरा देखा

सोना लेने जब निकले तो हर हर ढेर में मिट्टी थी
जब मिट्टी की खोज में निकले सोना ही सोना देखा

सूखी धरती सुन लेती है पानी की आवाज़ों को
प्यासी आँखें बोल उठती हैं हम ने इक दरिया देखा

आज हमें ख़ुद अपने अश्कों की क़ीमत मालूम हुई
अपनी चिता में अपने-आप को जब हम ने जलता देखा

चाँदी के से जिन के बदन थे सूरज के से मुखड़े थे
कुछ अंधी गलियों में हम ने उन का भी साया देखा

रात वही फिर बात हुई ना हम को नींद नहीं आई
अपनी रूह के सन्नाटे से शोर सा इक उठता देखा