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सोहबत है तिरे ख़याल के साथ | शाही शायरी
sohbat hai tere KHayal ke sath

ग़ज़ल

सोहबत है तिरे ख़याल के साथ

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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सोहबत है तिरे ख़याल के साथ
है हिज्र की शब विसाल के साथ

ऐ सर्व-ए-रवाँ टुक इक इधर देख
जी जाते हैं तेरी चाल के साथ

है तेग़ ओ कमान की सी निस्बत
अबरू को तिरे हिलाल के साथ

मत ज़ुल्फ़ को शाना कर मिरा जी
वाबस्ता है बाल बाल के साथ

दिल अपना हनूज़ सादगी से
पेचीदा है ज़ुल्फ़ ओ ख़ाल के साथ

मेहमान था किस का तू शब ऐ माह
आता है जो इस मलाल के साथ

रुख़्सारों ने कुछ अरक़ किया है
कुछ चश्म है इंफ़िआल के साथ

मैं शेर हूँ बेशा-ए-सुख़न का
सोहबत है सग ओ शग़ाल के साथ

इक्सीर है 'मुसहफ़ी' का मिलना
यानी कि वो है कमाल के साथ