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सोचिए गर्मी-ए-गुफ़्तार कहाँ से आई | शाही शायरी
sochiye garmi-e-guftar kahan se aai

ग़ज़ल

सोचिए गर्मी-ए-गुफ़्तार कहाँ से आई

राज नारायण राज़

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सोचिए गर्मी-ए-गुफ़्तार कहाँ से आई
लब-ब-लब ख़्वाहिश-ए-इज़हार कहाँ से आई

किस हिना-हाथ से आँगन है मोअत्तर इतना
वक़्त-ए-ख़ुश साअ'त-ए-बेदार कहाँ से आई

हाँ ये मुमकिन है नया मोड़ हो फूलों जैसा
फिर ये पाज़ेब की झंकार कहाँ से आई

ख़ून में नश्शा-ए-इज़हार का ख़ंजर पैवस्त
दरमियाँ चुप की ये तलवार कहाँ से आई

हम ख़राबे के मुसाफ़िर हैं हमारे दिल में
आरज़ू-ए-दर-ओ-दीवार कहाँ से आई

सोचता हूँ कि ख़ुश-अंदाज़ दिलों में ऐ 'राज़'
शोरिश-ए-ख़ू-ए-दिल-आज़ार कहाँ से आई