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सोचा है कि अब कार-ए-मसीहा न करेंगे | शाही शायरी
socha hai ki ab kar-e-masiha na karenge

ग़ज़ल

सोचा है कि अब कार-ए-मसीहा न करेंगे

जौन एलिया

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सोचा है कि अब कार-ए-मसीहा न करेंगे
वो ख़ून भी थूकेगा तो पर्वा न करेंगे

इस बार वो तल्ख़ी है कि रूठे भी नहीं हम
अब के वो लड़ाई है कि झगड़ा न करेंगे

याँ उस के सलीक़े के हैं आसार तो क्या हम
इस पर भी ये कमरा तह-ओ-बाला न करेंगे

अब नग़्मा-तराज़ान-ए-बर-अफ़रोख़्ता ऐ शहर
वासोख़्त कहेंगे ग़ज़ल इंशा न करेंगे

ऐसा है कि सीने में सुलगती हैं ख़राशें
अब साँस भी हम लेंगे तो अच्छा न करेंगे