सितम तू करता है लेकिन दुआ भी देता है
मिरा हरीफ़ मुझे हौसला भी देता है
है जिस का एक तबस्सुम क़रार-ए-जाँ अपना
उसी का तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल रुला भी देता है
बजा कि हिज्र का आलम अज़ाब है यारो
मगर ये अर्सा-ए-फ़ुर्क़त मज़ा भी देता है
है दिल-नवाज़ ग़ज़ब का मगर ये शो'ला-ए-इश्क़
कभी शगूफ़ा-ए-दिल को जला भी देता है
कभी है मौत में पिन्हाँ नजात का पहलू
कभी वो ज़ीस्त की सूरत सज़ा भी देता है
ग़ज़ल
सितम तू करता है लेकिन दुआ भी देता है
सज्जाद सय्यद