सितम की तेग़ पे ये दस्त-ए-बे-नियाम रखा
गुल-ए-शिकस्त सर-ए-शाख़-ए-इंतिक़ाम रखा
मैं दिल को उस की तग़ाफ़ुल-सरा से ले आया
और अपने ख़ाना-ए-वहशत में ज़ेर-ए-दाम रखा
निगार-ख़ाना-ए-तस्लीम क्या बयाबाँ था
जहाँ पे सैल-ए-ख़राबी को मैं ने थाम रखा
मिज़ा पे ख़ुश्क किए अश्क-ए-ना-मुराद उस ने
फिर आइने में मिरा अक्स-ए-लाला-फ़ाम रखा
इसी फ़साना-ए-वहशत में आख़िर-ए-शब को
मैं तेग़-ए-तेज़ रक्खी उस ने नीम जाम रखा
ग़ज़ल
सितम की तेग़ पे ये दस्त-ए-बे-नियाम रक्खा
अफ़ज़ाल अहमद सय्यद