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सितारों के आगे जो आबादियाँ हैं | शाही शायरी
sitaron ke aage jo aabaadiyan hain

ग़ज़ल

सितारों के आगे जो आबादियाँ हैं

अब्दुल हमीद अदम

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सितारों के आगे जो आबादियाँ हैं
तिरी ज़ुल्फ़ की गुम-शुदा वादियाँ हैं

ज़माना भी क्या रौनक़ों की जगह है
कहीं रोना-धोना कहीं शादियाँ हैं

तिरी काकुलें ही नहीं सब्ज़ परियाँ
मिरी आरज़ूएँ भी शहज़ादियाँ हैं

बड़ी शय है वाबस्तगी दो दिलों की
ये पाबंदियाँ ही तो आज़ादियाँ हैं

जहाँ क़द्र है कुछ न कुछ आदमी की
वो क्या क़ाबिल-ए-क़द्र आबादियाँ हैं

यकायक न दिल फेंकना आँख वालो
ये सब आँख की फ़ित्ना-ईजादियाँ हैं

ग़रीबों से क्या काम आसाइशों का
वो ऊँचे घरानों की शहज़ादियाँ हैं

'अदम' सूरतों की चमक पर न जाना
ये सब आँख की फ़ित्ना-ईजादियाँ हैं

जहाँ भी 'अदम' कोई दिलबर मकीं है
वहाँ कितनी गुंजान आबादियाँ हैं