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सिलसिला-दर-सिलसिला जुज़्व-ए-अदा होना ही था | शाही शायरी
silsila-dar-silsila juzw-e-ada hona hi tha

ग़ज़ल

सिलसिला-दर-सिलसिला जुज़्व-ए-अदा होना ही था

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

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सिलसिला-दर-सिलसिला जुज़्व-ए-अदा होना ही था
आख़िरश तेरी नज़र का मुद्दआ होना ही था

कू-ब-कू सहरा-ब-सहरा हम-सफ़र था इज़्तिराब
इक नया महशर नया इक हादसा होना ही था

डस रहा था तेरी यादों का मुसलसल अज़दहा
लहज़ा लहज़ा फ़िक्र में इक सानेहा होना ही था

हाथ उट्ठे चश्म-ए-तर थी दिल भी था महव-ए-फ़ुग़ाँ
हाशिया-दर-हाशिया हर्फ़-ए-दुआ होना ही था

खींच ली थी इक लकीर-ए-ना-रसा ख़ुद दरमियाँ
फ़ासला-दर-फ़ासला-दर-फ़ासला होना ही था