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सीने का अब तक है ज़ख़्म आला मियाँ | शाही शायरी
sine ka ab tak hai zaKHm aala miyan

ग़ज़ल

सीने का अब तक है ज़ख़्म आला मियाँ

मिर्ज़ा अज़फ़री

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सीने का अब तक है ज़ख़्म आला मियाँ
है अनी मिज़्गाँ की या भाला मियाँ

किस ज़माने की ये दुश्मन थी मिरी
इस मोहब्बत का हो मुँह काला मियाँ

इश्क़ में तेरे लुटे सब दुर्र-ए-अश्क
ऐसी वर-ख़र्ची ने घर घाला मियाँ

जो बिसात अपनी में था होश-ओ-ख़िरद
झोका झोली में तिरे लाला मियाँ

इश्क़ के ज़ेवर को आँसू मत कहो
मोतियों की है ये गुल-माला मियाँ

खोल पट घुँघट का दिखलाया जमाल
मेरे ताले का खुला ताला मियाँ

सर्व-ए-बाला को तिरे तो देख कर
हो गई दुनिया तह-ओ-बाला मियाँ

नेकी मेरी और बदी अपनी को जान
सब बदी को अपनी तो ढाला मियाँ

टाला, बाला 'अज़फ़री' को दे गए
कान का अपने दिखा बाला मियाँ