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सीना-ए-पुर-सोज़ यकसू चश्म-ए-गिर्यां यक तरफ़ | शाही शायरी
sina-e-pur-soz yaksu chashm-e-giryan yak taraf

ग़ज़ल

सीना-ए-पुर-सोज़ यकसू चश्म-ए-गिर्यां यक तरफ़

मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार

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सीना-ए-पुर-सोज़ यकसू चश्म-ए-गिर्यां यक तरफ़
दिल बचे क्या यक तरफ़ आतिश है तूफ़ाँ यक तरफ़

दाम सब्ज़े के से बचना ताइर-ए-दिल है मुहाल
सब्ज़ा-ए-ख़त यक तरफ़ ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ यक तरफ़

मुस्तइद हैं उस बुत-ए-तन्नाज़ पर बहर-ए-निसार
यक तरफ़ सब्र-ओ-दिल-ओ-दीं जान-ओ-ईमाँ यक तरफ़

किस पे शब-ख़ूँ मारने कूँ की सफ़-आरा फ़ौज-ए-नाज़
यक तरफ़ स्याही मिसी की सुर्ख़ी-ए-पाँ यक तरफ़

फिर बहार आई जो बाहम मुस्तइद्द-ए-जंग हैं
यक तरफ़ दस्त-ए-जुनूँ जैब-ओ-गरेबाँ यक तरफ़

टुक समा कर ऐ 'जहाँदार' आज उस कूचे में जा
तेग़-बर-कफ़ है वो यकसू और रक़ीबाँ यक तरफ़