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सीमाब-पुश्त गर्मी-ए-आईना दे है हम | शाही शायरी
simab-pusht garmi-e-aina de hai hum

ग़ज़ल

सीमाब-पुश्त गर्मी-ए-आईना दे है हम

मिर्ज़ा ग़ालिब

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सीमाब-पुश्त गर्मी-ए-आईना दे है हम
हैराँ किए हुए हैं दिल-ए-बे-क़रार के

आग़ोश-ए-गुल कुशूदा बरा-ए-विदा है
ऐ अंदलीब चल कि चले दिन बहार के

यूँ बाद-ए-ज़ब्त-ए-अश्क फिरूँ गिर्द यार के
पानी पिए किसू पे कोई जैसे वार के

बाद-अज़-विदा-ए-यार ब-ख़ूँ दर तापीदा हैं
नक़्श-ए-क़दम हैं हम कफ़-ए-पा-ए-निगार के

हम मश्क़-ए-फ़िक्र-ए-वस्ल-ओ-ग़म-ए-हिज्र से 'असद'
लाइक़ नहीं रहे हैं ग़म-ए-रोज़गार के