सीमाब-पुश्त गर्मी-ए-आईना दे है हम
हैराँ किए हुए हैं दिल-ए-बे-क़रार के
आग़ोश-ए-गुल कुशूदा बरा-ए-विदा है
ऐ अंदलीब चल कि चले दिन बहार के
यूँ बाद-ए-ज़ब्त-ए-अश्क फिरूँ गिर्द यार के
पानी पिए किसू पे कोई जैसे वार के
बाद-अज़-विदा-ए-यार ब-ख़ूँ दर तापीदा हैं
नक़्श-ए-क़दम हैं हम कफ़-ए-पा-ए-निगार के
हम मश्क़-ए-फ़िक्र-ए-वस्ल-ओ-ग़म-ए-हिज्र से 'असद'
लाइक़ नहीं रहे हैं ग़म-ए-रोज़गार के
ग़ज़ल
सीमाब-पुश्त गर्मी-ए-आईना दे है हम
मिर्ज़ा ग़ालिब