सीमाब जल गया तो उसे गर्द बोलिए
आशिक़ फ़ना हुआ तो उसे मर्द बोलिए
शर्बत कूँ ख़ून-ए-दिल के पियो ज़हर का सा घूँट
ऐसा तबीब काँ है जिसे दर्द बोलिए
है क्या किताब-ए-मतला-ए-अनवार रुख़ तिरा
सूरज कूँ जिस का यक वर्क़-ए-ज़र्द बोलिए
जियूँ बू हुए हैं महव हर यक रंग-ए-गुल में हम
ऐ बुलबुलो सदा-ए-अनल-वर्द बोलिए
अलबत्ता होवे मतला-ए-दीवान आफ़्ताब
तुझ हुस्न की सिफ़त में अगर फ़र्द बोलिए
बाज़ी है जान हिज्र है हार और विसाल जीत
ग़म है बिसात-ए-दिल कूँ मिरे नर्द बोलिए
है आग आशिक़ों का दम-ए-सर्द ऐ 'सिराज'
और आग की लपट कूँ दम-ए-सर्द बोलिए
ग़ज़ल
सीमाब जल गया तो उसे गर्द बोलिए
सिराज औरंगाबादी