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सीमाब जल गया तो उसे गर्द बोलिए | शाही शायरी
simab jal gaya to use gard boliye

ग़ज़ल

सीमाब जल गया तो उसे गर्द बोलिए

सिराज औरंगाबादी

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सीमाब जल गया तो उसे गर्द बोलिए
आशिक़ फ़ना हुआ तो उसे मर्द बोलिए

शर्बत कूँ ख़ून-ए-दिल के पियो ज़हर का सा घूँट
ऐसा तबीब काँ है जिसे दर्द बोलिए

है क्या किताब-ए-मतला-ए-अनवार रुख़ तिरा
सूरज कूँ जिस का यक वर्क़-ए-ज़र्द बोलिए

जियूँ बू हुए हैं महव हर यक रंग-ए-गुल में हम
ऐ बुलबुलो सदा-ए-अनल-वर्द बोलिए

अलबत्ता होवे मतला-ए-दीवान आफ़्ताब
तुझ हुस्न की सिफ़त में अगर फ़र्द बोलिए

बाज़ी है जान हिज्र है हार और विसाल जीत
ग़म है बिसात-ए-दिल कूँ मिरे नर्द बोलिए

है आग आशिक़ों का दम-ए-सर्द ऐ 'सिराज'
और आग की लपट कूँ दम-ए-सर्द बोलिए