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सिधारी क़ुव्वत-ए-दिल ताब और ताक़त से कह दीजो | शाही शायरी
sidhaari quwwat-e-dil tab aur taqat se kah dijo

ग़ज़ल

सिधारी क़ुव्वत-ए-दिल ताब और ताक़त से कह दीजो

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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सिधारी क़ुव्वत-ए-दिल ताब और ताक़त से कह दीजो
हुए हैं ना-तवाँ हम बिस्तर-ए-राहत से कह दीजो

मुआ भी मैं तो ऐ यारो जो यारों से मरे होवे
सलाम-ए-शौक़ उस का तुम मिरी तुर्बत से कह दीजो

गर ऐ क़ासिद तू उस के रू-ब-रू जावे इशारे से
दुआ मेरी भी उस माशूक़-ए-कम-फ़ुर्सत से कह दीजो

सुनो ऐ यारो इक माशूक़-ए-हरजाई के जल्वे ने
फिराया दर-ब-दर मेरे तईं ग़ुर्बत से कह दीजो

बयाँ जो जो कि सूरत तुझ से की है मैं ने ऐ क़ासिद
तू उस के कान में झुक कर उसी सूरत से कह दीजो

भला उस का तो दिल ख़ुश होवेगा इस बात को सुन कर
न पहुँचे मुद्दआ को अपने हम हसरत से कह दीजो

हुआ दीवाना, था वो 'मुसहफ़ी' तेरा जो सौदाई
सबा गर उस गली में जाए, जमइय्यत से कह दीजो