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शोख़ी-ए-गर्मी-ए-रफ़तार दिखाते न चलो | शाही शायरी
shoKHi-e-garmi-e-raftar dikhate na chalo

ग़ज़ल

शोख़ी-ए-गर्मी-ए-रफ़तार दिखाते न चलो

तनवीर देहलवी

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शोख़ी-ए-गर्मी-ए-रफ़तार दिखाते न चलो
फ़ित्ना-ए-हश्र को सीमाब बताते न चलो

ग़ैर भी करने लगे नक़्श-ए-क़दम पर सज्दे
नक़श-ए-हुब दिल पे रक़ीबों के बिठाते न चलो

चलते चलते तो न ग़ैरों से हँसो बहर-ए-ख़ुदा
ख़ाक में अश्क नमत मुझ को मिलाते न चलो

निगह-ए-गर्म से गुलशन में न देखो गुल को
आतिश-ए-रश्क से बुलबुल को जलाते न चलो

उस के कूचे से न घबरा के चलो ऐ 'तनवीर'
लोग पा जाएँगे आँखों को चुराते न चलो