शिकस्ता-दिल थे तिरा ए'तिबार क्या करते
जो ए'तिबार भी करते तो प्यार क्या करते
ज़रा सी देर को बैठे थे फिर उठा न गया
शजर ही ऐसा था वो साया-दार क्या करते
शब इंतिज़ार में दिन याद-ए-यार में काटे
अब और इज़्ज़त-ए-लैल-ओ-नहार क्या करते
कभी क़दम सफ़र-ए-शौक़ में रुके ही नहीं
तो संग-ए-मील भला हम शुमार क्या करते
सितम-शनास-ए-मोहब्बत तो जाँ पे खेल गए
निशाना-ए-सितम-ए-रोज़गार क्या करते
हमारी आँख में आँसू न उस के लब पे हँसी
ख़याल ख़ातिर-ए-अब्र-ए-बहार क्या करते
वो ना-पसंद था लेकिन उसे भुलाया नहीं
जो बात बस में न थी इख़्तियार क्या करते
दरून-ए-ख़ाना-ए-दिल कैसा शोर है 'साजिद'
हमें ख़बर थी मगर आश्कार क्या करते
ग़ज़ल
शिकस्ता-दिल थे तिरा ए'तिबार क्या करते
साजिद अमजद