शिकायत से ग़रज़ क्या मुद्दआ' क्या
नहीं तो दोस्त दुश्मन का गिला क्या
न आया नामा-बर घबरा रहा हूँ
नहीं मा'लूम क्या गुज़री हुआ क्या
बहुत अच्छी निहायत ख़ूब गुज़री
अजी आफ़त-ज़दों का पूछना क्या
न दो मुझ को मुबारकबाद बे-सूद
बुरी तक़दीर वालों का भला क्या
ये क्यूँ चितवन फिरी क्यूँ आँख बदली
भला मैं ने क़ुसूर ऐसा किया क्या
कब उस कूचे में ठहरेगी मिरी ख़ाक
न होगा कोई एहसान-ए-हवा क्या
उमीद उस से ग़लत समझा ये ओ दिल
सितमगर से तमन्ना-ए-वफ़ा क्या
बढ़ा कर हाथ लें उन को ये मुश्किल
नसीब ऐसे मुबारक फिर दुआ क्या
न घबराओ अजी करवट न बदलो
इरादे हैं अभी ख़ातिर में क्या क्या
ये कब तक पारसाई आशिक़ों से
मोहब्बत है तो फिर हम से हया क्या
जिगर पानी है सदमों से लहू दिल
मिरे सीने में ओ ज़ालिम रहा क्या
किया होता कोई एहसाँ तो ज़ालिम
करेंगे शुक्र तेरा हम अदा क्या
नहीं मुमकिन कि तुझ को रहम आए
वो मैं क्या और मेरी इल्तिजा क्या
मआ'ज़-अल्लाह गर है नौजवानी
रहोगे उम्र-भर तुम पारसा क्या
कहाँ है दर्द दिल में जो कहो हाए
मज़ा देगा हमारा माजरा क्या
किसे देखा कि भोला आप को भी
तअ'ज्जुब है ये मुझ को हो गया क्या
'नसीम' आओ ज़रा तुम भी सुनो तो
ये चर्चा हो रहा है जा-ब-जा क्या
ग़ज़ल
शिकायत से ग़रज़ क्या मुद्दआ' क्या
नसीम देहलवी