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शिकायत के एवज़ हम शुक्र करते हैं सनम तेरे | शाही शायरी
shikayat ke ewaz hum shukr karte hain sanam tere

ग़ज़ल

शिकायत के एवज़ हम शुक्र करते हैं सनम तेरे

नसीम देहलवी

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शिकायत के एवज़ हम शुक्र करते हैं सनम तेरे
मज़ा देने लगे कुछ सहते सहते अब सितम तेरे

न पूछ अब मुझ से तू मेरी उमीदों की ये सूरत है
कि हैं भी और नहीं भी जिस तरह पुर-लुत्फ़ कम तेरे

जिधर तू ने किया रुख़ ज़ेर-ए-पा मेरा तसव्वुर था
न बावर हो तो देख आँखों में हैं नक़्श-ए-क़दम तेरे

लब-ए-जाँ-बख़्श-ए-जानाँ कब इजाज़त देंगे मरने की
क़यामत तक न देखेंगे क़दम ख़्वाब-ए-अदम तेरे

नहीं रखता कोई सरमाया-ए-आ'माल पास अपने
भरोसे के लिए आशिक़ के काफ़ी हैं करम तेरे

तमन्ना ग़ैर की करना ख़िलाफ़-ए-रस्म-ए-उल्फ़त है
मैं एहसान-ए-अजल क्यूँ लूँ नहीं हैं क्या सितम तेरे

ज़रा देखें तो क्यूँ कर दम निकल जाता है सदमों से
फ़िराक़-ए-दिल-रुबा आज इम्तिहाँ करते हैं हम तेरे

मुझे भूले नहीं पास-ए-मोहब्बत उस को कहते हैं
शब-ए-वसलत में भी हैं दूरी-ए-जानाँ करम तेरे

हुजूम-ए-बे-खु़दी में ऐ 'नसीम' अब पास-ए-मा'नी क्या
इजाज़त दे बुरा अच्छा लिखें जो कुछ क़लम तेरे