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शेर क्या जिस में नोक-झोक न हो | शाही शायरी
sher kya jis mein nok-jhok na ho

ग़ज़ल

शेर क्या जिस में नोक-झोक न हो

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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शेर क्या जिस में नोक-झोक न हो
मुर्ग़ फिर क्या लड़े जो नोक न हो

कहीं देखे ही सादा-रू खूँ-ख़्वार
चश्मा-ए-आईना में जोक न हो

वही कूचा भुला कि जिस में कभू
दनदनालों की रोक-टोक न हो

नाम गर्दूं पे जिस का है परवीं
नेशकर का ये उस के फोक न हो

रंडी-बाज़ी वो क्या करे फिर ख़ाक
पास जिस के किताब-ए-कोक न हो

गल्ला बायद हरीस-ए-शहवत-रा
एक बकरी से शाद-बोक न हो

पेट का भाड़ है बला न भरे
ख़ूब ता इस में झोका-झोक न हो

हुस्न मुतरिब है सुन के गाने का
पेशा ले जब गले में डोक न हो

क्या फंकेती का वो करे दावा
'मुसहफ़ी' याद जिस को रोक न हो