EN اردو
शौक़ उर्यां है बहुत जिन के शबिस्तानों में | शाही शायरी
shauq uryan hai bahut jin ke shabistanon mein

ग़ज़ल

शौक़ उर्यां है बहुत जिन के शबिस्तानों में

ज़ुबैर रिज़वी

;

शौक़ उर्यां है बहुत जिन के शबिस्तानों में
वो मिले हम को हिजाबों के सनम-ख़ानों में

खिड़कियाँ खोलो कि दर आए कोई मौज-ए-हवा
राख का ढेर हैं कुछ लोग तरब-ख़ानों में

शहर-ए-ख़ुर्शीद के लोगों को ख़बर दो कोई
दिन के ग़म डूब गए रात के पैमानों में

जब कोई साअ'त-ए-शादाब मिली जाम-ब-कफ़
जान सी पड़ गई बुझते हुए अरमानों में

ऐ सबा ले के चली आ किसी बादल की फुवार
ख़ाक उड़ती है बहुत दिल के बयाबानों में

ऐ ग़ज़ालान-ए-वतन नाज़ करो हम पे कि हम
आख़िरी पुश्त हैं ख़ूबाँ के सना-ख़्वानों में