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शरीर तेरी तरह आँख भी तिरी होगी | शाही शायरी
sharir teri tarah aankh bhi teri hogi

ग़ज़ल

शरीर तेरी तरह आँख भी तिरी होगी

वसीम ख़ैराबादी

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शरीर तेरी तरह आँख भी तिरी होगी
उठाई होगी क़यामत भी जब उठी होगी

फ़िशार-ए-गोर से वो भी तो पिस गई होगी
जो दिल में कोई तमन्ना रही-सही होगी

भरा है ख़ूब ही रिंदों ने उस को ऐ वाइ'ज़
इसी से दुख़्तर-ए-रज़ आप से खिंची होगी

शराब आ के तो शीशे में बन गई है परी
जो आई होगी ये दिल में तो क्या बनी होगी

शराब सुर्ख़ सी होगी सियाह बोतल में
असीर क़िला-ए-आहन में ये परी होगी

शराब पी के सर-ए-अर्श आप पहुँचेंगे
'वसीम' शैख़ को मे'राज-ए-बे-ख़ुदी होगी