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शरह-ए-बेदर्दी-ए-हालात न होने पाई | शाही शायरी
sharah-e-bedardi-e-haalat na hone pai

ग़ज़ल

शरह-ए-बेदर्दी-ए-हालात न होने पाई

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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शरह-ए-बेदर्दी-ए-हालात न होने पाई
अब के भी दिल की मुदारात न होने पाई

फिर वही वा'दा जो इक़रार न बनने पाया
फिर वही बात जो इसबात न होने पाई

फिर वो परवाने जिन्हें इज़्न-ए-शहादत न मिला
फिर वो शमएँ कि जिन्हें रात न होने पाई

फिर वही जाँ-ब-लबी लज़्ज़त-ए-मय से पहले
फिर वो महफ़िल जो ख़राबात न होने पाई

फिर दम-ए-दीद रहे चश्म ओ नज़र दीद-तलब
फिर शब-ए-वस्ल मुलाक़ात न होने पाई

फिर वहाँ बाब-ए-असर जानिए कब बंद हुआ
फिर यहाँ ख़त्म मुनाजात न होने पाई

'फ़ैज़' सर पर जो हर इक रोज़ क़यामत गुज़री
एक भी रोज़ मुकाफ़ात न होने पाई