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शम-ए-उम्मीद जला बैठे थे | शाही शायरी
sham-e-ummid jala baiThe the

ग़ज़ल

शम-ए-उम्मीद जला बैठे थे

सफ़िया शमीम

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शम-ए-उम्मीद जला बैठे थे
दिल में ख़ुद आग लगा बैठे थे

होश आया तो कहीं कुछ भी न था
हम भी किस बज़्म में जा बैठे थे

दश्त गुलज़ार हुआ जाता है
क्या यहाँ अहल-ए-वफ़ा बैठे थे

अब वहाँ हश्र उठा करते हैं
कल जहाँ अहल-ए-वफ़ा बैठे थे