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शहरयारों ने दिखाईं मुझ को तस्वीरें बहुत | शाही शायरी
shahryaron ne dikhain mujhko taswiren bahut

ग़ज़ल

शहरयारों ने दिखाईं मुझ को तस्वीरें बहुत

सलीम शहज़ाद

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शहरयारों ने दिखाईं मुझ को तस्वीरें बहुत
तेरी बस्ती तक मिलीं रस्ते में जागीरें बहुत

नज़्र-ए-आतिश कर रहे हो आज पर कल देखना
इन सहीफ़ों की लिखी जाएँगी तफ़्सीरें बहुत

आज भी मेरे लिए मश्कूक है तेरा लगाव
पत्थरों पे नक़्श देखीं मैं ने तहरीरें बहुत

सात रंगों में बटी हो जैसे सूरज की किरन
ख़्वाब देखा एक देखीं, उस की ताबीरें बहुत

अब बिछड़ कर फिर रही है बन की देवी बद-हवास
मुझ से वहशी के लिए तरसी थीं ज़ंजीरें बहुत

उन को फ़ुर्सत ही न मिल पाई कि सुलझाएँ ये जाल
ख़त्म हो कर रह गईं हाथों में तक़दीरें बहुत

वो किसी पहलू मुझे क़ातिल न लगता था 'सलीम'
यूँ तो थीं आराइश-ए-दीवार शमशीरें बहुत