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शगुफ़्ता बच्चों का चेहरा दिखाई देने लगे | शाही शायरी
shagufta bachchon ka chehra dikhai dene lage

ग़ज़ल

शगुफ़्ता बच्चों का चेहरा दिखाई देने लगे

सलाम मछली शहरी

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शगुफ़्ता बच्चों का चेहरा दिखाई देने लगे
मैं क्या करूँ कि उजाला दिखाई देने लगे

ये सख़्त ज़ुल्म है मालिक कि सुब्ह होते ही
तमाम घर में अँधेरा दिखाई देने लगे

वो सिर्फ़ मैं हूँ जो सौ जन्नतें सजा कर भी
उदास उदास सा तन्हा दिखाई देने लगे

मैं कामयाब जभी हूँगा ऐ रुबाब-ए-हयात
कि बज़्म को तिरा नग़्मा दिखाई देने लगे

गुलाब उगाने की आदत से फ़ाएदा क्या है
अगर गुलाब में शोला दिखाई देने लगे

मिरा ही अक्स सही फिर भी वो फ़रिश्ता है
जो ग़ैर हो के भी अपना दिखाई देने लगे

बहुत अलील हो लेकिन ये बुज़-दिली है 'सलाम'
कि तुम को मौत का साया दिखाई देने लगे