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शब ज़रा देर से गुज़रेगी न घबरा ऐ दिल | शाही शायरी
shab zara der se guzregi na ghabra ai dil

ग़ज़ल

शब ज़रा देर से गुज़रेगी न घबरा ऐ दिल

रज़ी रज़ीउद्दीन

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शब ज़रा देर से गुज़रेगी न घबरा ऐ दिल
सुब्ह ख़ुद होगी नुमूदार ठहर जा ऐ दिल

खो गई गेसू-ए-जानाँ कि घनी छाँव कहाँ
हर तरफ़ धूप का तपता हुआ सहरा ऐ दिल

कूचा-ए-यार में आए थे किन उम्मीदों से
लुट गई आ के यहाँ शौक़ की दुनिया ऐ दिल

कैसी शोरिश सी बपा है कभी चल कर देखें
क़त्ल-गाहों में है ये कैसा तमाशा ऐ दिल

मौसम-ए-गुल है ये कैसा कि चमन हैराँ है
हर कली फूल का दिल जैसे कि मेरा ऐ दिल

दुश्मन-ए-जाँ हैं सभी सारे के सारे क़ातिल
तू भी इस भीड़ में कुछ देर ठहर जा ऐ दिल