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शब की बहार सुब्ह की नुदरत न पूछिए | शाही शायरी
shab ki bahaar subh ki nudrat na puchhiye

ग़ज़ल

शब की बहार सुब्ह की नुदरत न पूछिए

शकील बदायुनी

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शब की बहार सुब्ह की नुदरत न पूछिए
कितना हसीं है ख़्वाब-ए-मोहब्बत न पूछिए

फूलों की ग़म-रसीदा मसर्रत न पूछिए
ज़ाहिर में ख़ंदा-ज़न हैं हक़ीक़त न पूछिए

वो दिन गए कि थी मुझे पुर्सिश की आरज़ू
महबूब हो के अब मिरी हालत न पूछिए

हाथों से दिल के छूट गया दामन-ए-उमीद
क्या मिल गया जवाब शिकायत न पूछिए

दिल को न होगी ताब-ए-ग़म-ए-बे-तवज्जोही
लिल्लाह दास्तान-ए-मोहब्बत न पूछिए

यूँ देखते हैं जैसे उधर देखते नहीं
उस लुतफ़-ए-बे-ग़रज़ की नज़ाकत न पूछिए