शब-ए-वस्ल क्या मुख़्तसर हो गई
ज़रा आँख झपकी सहर हो गई
निगाहों ने सब राज़-ए-दिल कह दिया
उन्हें आज अपनी ख़बर हो गई
बड़ी चीज़ है तर्ज़-ए-बेगानगी
ये तरकीब अगर कारगर हो गई
इलाही बुरा हो ग़म-ए-इश्क़ का
सुना है कि उन को ख़बर हो गई
किए मुझ पे एहसाँ ग़म-ए-यार ने
हमेशा को नीची नज़र हो गई
नुमायाँ हुई सुब्ह-ए-पीरी 'जिगर'
बस अब दास्ताँ मुख़्तसर हो गई
ग़ज़ल
शब-ए-वस्ल क्या मुख़्तसर हो गई
जिगर मुरादाबादी