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शब-ए-वस्ल है बहस हुज्जत अबस | शाही शायरी
shab-e-wasl hai bahs hujjat abas

ग़ज़ल

शब-ए-वस्ल है बहस हुज्जत अबस

हफ़ीज़ जौनपुरी

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शब-ए-वस्ल है बहस हुज्जत अबस
ये शिकवे अबस ये शिकायत अबस

हुआ उन को कब ए'तिमाद-ए-वफ़ा
जताते रहे हम मोहब्बत अबस

यहाँ अब तो कुछ और सामान है
वो आते हैं बहर-अयादत अबस

नसीबों से अपने है शिकवा हमें
करें क्यूँ किसी की शिकायत अबस

मिरा हाल सुन कर वो हैं बे-क़रार
किया किस ने ज़िक्र-ए-मोहब्बत अबस

फ़लक मर-मिटों से न रख ये ग़ुबार
मिटा बे-कसों की न तुर्बत अबस

सुनूँगा तिरी होश में आ तो लूँ
अभी से है नासेह नसीहत अबस

ये पर्दा हसीनों को लाज़िम न था
छुपाती हैं ये अच्छी सूरत अबस

वो पहले सुलूक आप के याद हैं
मिरे हाल पर अब इनायत अबस

तकल्लुफ़ में फिर वो कहाँ सादगी
ये आराइश-ए-हुस्न-ओ-ज़ीनत अबस

'हफ़ीज़' इस ज़मीं में कहो शेर कम
दिखाओ न ज़ोर-ए-तबीअत अबस