शब-ए-सियाह हुआ रोज़ ऐ सजन तुझ बिन
मिसाल-ए-शम्अ जले अहल-ए-अंजुमन तुझ बिन
हुई है जान मुझे ज़िंदगी मरन तुझ बिन
कफ़न हुई हैं बदन के ऊपर बसन तुझ बिन
न शहर बीच मिरा दिल लगे न सहरा में
कुछ आवती नहीं ऐ माह मुझ सीं बन तुझ बिन
हुआ है आग का शोला शराब प्याले में
लगा है जान लबाँ कूँ मिरे दहन तुझ बिन
उदास दिल पे हमारा कहीं न जा पर्चा
कठिन हुआ है मुझे शहर में बसन तुझ बिन
कभी तो याद कर इख़्लास फ़ातिहा कहना
कि 'आबरू' का हुआ हिज्र सीं मरन तुझ बिन
ग़ज़ल
शब-ए-सियाह हुआ रोज़ ऐ सजन तुझ बिन
आबरू शाह मुबारक