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शब-ए-सियाह हुआ रोज़ ऐ सजन तुझ बिन | शाही शायरी
shab-e-siyah hua roz ai sajan tujh bin

ग़ज़ल

शब-ए-सियाह हुआ रोज़ ऐ सजन तुझ बिन

आबरू शाह मुबारक

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शब-ए-सियाह हुआ रोज़ ऐ सजन तुझ बिन
मिसाल-ए-शम्अ जले अहल-ए-अंजुमन तुझ बिन

हुई है जान मुझे ज़िंदगी मरन तुझ बिन
कफ़न हुई हैं बदन के ऊपर बसन तुझ बिन

न शहर बीच मिरा दिल लगे न सहरा में
कुछ आवती नहीं ऐ माह मुझ सीं बन तुझ बिन

हुआ है आग का शोला शराब प्याले में
लगा है जान लबाँ कूँ मिरे दहन तुझ बिन

उदास दिल पे हमारा कहीं न जा पर्चा
कठिन हुआ है मुझे शहर में बसन तुझ बिन

कभी तो याद कर इख़्लास फ़ातिहा कहना
कि 'आबरू' का हुआ हिज्र सीं मरन तुझ बिन