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शब-ए-फ़ुर्क़त क़ज़ा नहीं आती | शाही शायरी
shab-e-furqat qaza nahin aati

ग़ज़ल

शब-ए-फ़ुर्क़त क़ज़ा नहीं आती

नसीम भरतपूरी

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शब-ए-फ़ुर्क़त क़ज़ा नहीं आती
लाख कहता हूँ आ नहीं आती

चुप हैं वो सुन के शिकवा-ए-अग़्यार
बात भी तो बना नहीं आती

वो तो वादे पे आ चुके ऐ मौत
तू भी आती है या नहीं आती

किस मरज़ की दवा हैं आप अगर
दर्द-ए-दिल की दवा नहीं आती

शीशा-ए-दिल है किस क़दर नाज़ुक
टूटने की सदा नहीं आती

हम हैं आज़ादा-रौ जहाँ में 'नसीम'
याँ हवस की हवा नहीं आती