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शायद किसी बला का था साया दरख़्त पर | शाही शायरी
shayad kisi bala ka tha saya daraKHt par

ग़ज़ल

शायद किसी बला का था साया दरख़्त पर

अब्बास ताबिश

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शायद किसी बला का था साया दरख़्त पर
चिड़ियों ने रात शोर मचाया दरख़्त पर

मौसम तुम्हारे साथ का जाने किधर गया
तुम आए और बोर न आया दरख़्त पर

देखा न जाए धूप में जलता हुआ कोई
मेरा जो बस चले करूँ साया दरख़्त पर

सब छोड़े जा रहे थे सफ़र की निशानियाँ
मैं ने भी एक नक़्श बनाया दरख़्त पर

अब के बहार आई है शायद ग़लत जगह
जो ज़ख़्म दिल पे आना था आया दरख़्त पर

हम दोनों अपने अपने घरों में मुक़ीम हैं
पड़ता नहीं दरख़्त का साया दरख़्त पर