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'सय्यद' तुम्हारे ग़म की किसी को ख़बर नहीं | शाही शायरी
sayyad tumhaare gham ki kisi ko KHabar nahin

ग़ज़ल

'सय्यद' तुम्हारे ग़म की किसी को ख़बर नहीं

मुज़फ्फर अली सय्यद

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'सय्यद' तुम्हारे ग़म की किसी को ख़बर नहीं
हो भी ख़बर किसी को तो समझो ख़बर नहीं

मौजूद हो तो किस लिए मफ़क़ूद हो गए
किन जंगलों में जा के बसे हो ख़बर नहीं

इतनी ख़बर है फूल से ख़ुशबू जुदा हुई
उस को कहीं से ढूँढ के लाओ ख़बर नहीं

दिल में उबल रहे हैं वो तूफ़ाँ कि अल-अमाँ
चेहरे पे वो सुकून है मानो ख़बर नहीं

देखो तो हर बग़ल में है दफ़्तर दबा हुआ
अख़बार में जो छापना चाहो ख़बर नहीं

नोक-ए-ज़बाँ हैं तुम को शराबों के नाम सब
लेकिन नशे की बादा-परस्तो ख़बर नहीं

काग़ज़ ज़मीन-ए-शोर क़लम शाख़-ए-बे-समर
किस आरज़ू पे उम्र गुज़ारो ख़बर नहीं

'सय्यद' कोई तो ख़्वाब भी तसनीफ़ कीजिए
हर बार तुम यही न सुनाओ ख़बर नहीं