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सवाल-ए-वस्ल पे उज़्र-ए-विसाल कर बैठे | शाही शायरी
sawal-e-wasl pe uzr-e-visal kar baiThe

ग़ज़ल

सवाल-ए-वस्ल पे उज़्र-ए-विसाल कर बैठे

नूह नारवी

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सवाल-ए-वस्ल पे उज़्र-ए-विसाल कर बैठे
वो किस ख़याल से ऐसा ख़याल कर बैठे

अब आओ मान भी जाओ जो कुछ हुआ वो हुआ
ज़रा सी बात का इतना मलाल कर बैठे

हम उठते बैठते भी उन के पास डरते हैं
वो और कुछ न इलाही ख़याल कर बैठे

वो इस लिए मिरे पहलू में बैठते ही नहीं
कि ये कहीं न सवाल-ए-विसाल कर बैठे