EN اردو
सवाल बे-अमान बन के रह गए | शाही शायरी
sawal be-aman ban ke rah gae

ग़ज़ल

सवाल बे-अमान बन के रह गए

अब्दुल अहद साज़

;

सवाल बे-अमान बन के रह गए
जवाब इम्तिहान बन के रह गए

हद-ए-निगाह तक बुलंद फ़लसफ़े
घरों के साएबान बन के रह गए

जो ज़ेहन, आगही की कार-गाह थे
ख़याल की दुकान बन के रह गए

बयाज़ पर सँभल सके न तजरबे
फिसल पड़े बयान बन के रह गए

किरन किरन यक़ीन जैसे रास्ते
धुआँ धुआँ गुमान बन के रह गए

ज़ियाएँ बाँटते थे, चाँद थे कभी
गहन लगा तो दान बन के रह गए

मिरा वजूद शहर शहर हो गया
कहीं कहीं निशान 'बन' के रह गए

कमर जवाब दे के झुक गई बदन
सवालिया निशान बन के रह गए

मैं फ़न की साअतों को लब न दे सका
नुक़ूश बे-ज़बान बन के रह गए

नफ़स नफ़स तलब तलब थे 'साज़' हम
क़दम क़दम तकान बन के रह गए