सवाब की दुआओं ने गुनाह कर दिया मुझे
बड़ी अदा से वक़्त ने तबाह कर दिया मुझे
मुनाफ़िक़त के शहर में सज़ाएँ हर्फ़ को मिलीं
क़लम की रौशनाई ने सियाह कर दिया मुझे
मिरे लिए हर इक नज़र मलामतों में ढल गई
न कुछ किया तो हैरत-ए-निगाह कर दिया मुझे
ख़ुशी जो ग़म से मिल गई तो फूल आग हो गए
जुनून-ए-बंदगी ने ख़ुद-निगाह कर दिया मुझे
तमाम अक्स तोड़ के मिरा सवाल बाँट के
इक आइने के शहर की सिपाह कर दिया मुझे
बड़ा करम हुज़ूर का सुना गया न हाल भी
समाअ'तों में दफ़्न एक आह कर दिया मुझे
ग़ज़ल
सवाब की दुआओं ने गुनाह कर दिया मुझे
सरवत ज़ेहरा