सौ क़िस्सों से बेहतर है कहानी मिरे दिल की
सुन उस को तू ऐ जान ज़बानी मिरे दिल की
हर नाले में याँ टुकड़े जिगर होता है बुलबुल
आसान नहीं तर्ज़ उड़ानी मिरे दिल की
होनी है शहीद एक न इक रोज़ तमन्ना
मौक़ूफ़ हो क्या मर्सिया-ख़्वानी मिरे दिल की
पीरी में भी मिलता है जो कम-सिन कोई महबूब
करती है वहीं ऊद जवानी मिरे दिल की
तक़्सीम किए पारा-ए-दिल बज़्म-ए-बुताँ में
हर एक के है पास निशानी मिरे दिल की
इक बात में हो जाए मुसख़्ख़र वो परी-रू
सुनता ही नहीं सेहर-बयानी मिरे दिल की
है अब्र तो क्या चाहे फ़लक को भी जला दे
बिजली में कहाँ शोला-फ़िशानी मिरे दिल की
ज़ुल्फ़ों में किया क़ैद न अबरू से किया क़त्ल
तू ने तो कोई बात न मानी मिरे दिल की
ये बार-ए-ग़म-ए-इश्क़ समाया है कि 'नासिख़'
है कोह से दह-चंद गिरानी मिरे दिल की
ग़ज़ल
सौ क़िस्सों से बेहतर है कहानी मिरे दिल की
इमाम बख़्श नासिख़