सर उठाने की तो हिम्मत नहीं करने वाले
ये जो मुर्दा हैं बग़ावत नहीं करने वाले
मुफ़्लिसी लाख सही हम में वो ख़ुद्दारी है
हाकिम-ए-वक़्त की ख़िदमत नहीं करने वाले
इन से उम्मीद न रख हैं ये सियासत वाले
ये किसी से भी मोहब्बत नहीं करने वाले
हाथ आँधी से मिला आए इसी दौर के लोग
ये चराग़ों की हिफ़ाज़त नहीं करने वाले
इश्क़ हम को ये निभाना है तो जो रख शर्तें
हम किसी शर्त पे हुज्जत नहीं करने वाले
फोड़ कर सर तिरे दर पर यहीं मर जाएँगे
हम तिरे शहर से हिजरत नहीं करने वाले
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ग़ज़ल
सर उठाने की तो हिम्मत नहीं करने वाले
नादिम नदीम